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आज का प्रश्न 31/10/2012

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आज का प्रश्न 31/10/2012
ना काहू से बैर।
मांगूँ सबकी खैर।।
“गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वर:, गुरु साक्षात् परमं ब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नम:”
“गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काके लागूं पाँय । बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय ॥”
” बलिहारी गुरु आपनो, घड़ी-घड़ी सौ सौ बार । मानुष से देवत किया करत न लागी बार ”
“सीस दिये जो गुरु मिलै, तो भी सस्ता जान॥”
गुरु कुम्हार सिख कुम्भ है, गढ़ि-गढ़ि काढ़त खोट। भीतर से अवलम्ब है, ऊपर मारत चोट॥
” जा के गुरु है आंधरा, चेला निपट निरंध। अंधे अंधा ठेलिया, दोना कूप परंत॥
“कबीर जोगी जगत गुरु, तजै जगत की आस।”
“गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढ़ि – गढ़ि काढ़ै खोट | अन्तर हाथ सहार दै, बाहर बाहर चोट ||”

गुरु शिष्य सम्बन्धो का गौरवमयी इतिहास रहा है। माता-पिता के बाद शिक्षक की ही सबसे अहम् होती है किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व निर्माण में। शिक्षको का मन में विचार आते ही सर श्रद्धा से झुक जाता है। परन्तु क्या शिक्षक समय की माँग के अनुसार अपनी भूमिका निभा पा रहे है? विचारणीय पश्न है।
इसका उत्तर जानने के लिए वन्दनीय शिक्षकों से कुछ प्रश्न करना चाहता हूँ।
अतः आज मैं अपने प्रश्नों को शिक्षक यानि कि अध्यापक पर केन्द्रित करता हूँ ।
481- आपने शिक्षक बनना क्यों उचित समझा?
482- क्या आपको लगता है कि यह पेशा अपनाकर आपने अपना भविष्य बरबाद कर दिया?
483- यदि हाँ आप यह पेशा छोड़ क्यों नहीं देते?
484- यदि नहीं तो क्या आप अपने बच्चों को शिक्षक बनाना चाहेंगें?
485- क्या आपके साथ पढ़ने वाले कमजोर सहपाठी आज करोणों में खेल रहे हैं?
486- उनके ठाट बाट देख कर क्या आपका मन नहीं कचोटता?
487- क्या आप अपने विद्यार्थियों को भी उसी मुकाम पर देखना चाहते हैं? जिस पर अपने प्राणों से प्रिय बच्चों को?
488- क्या आपके बच्चे उसी विद्यालय में पढ़ते है, जिसमे आप पढ़ाते है?
489- यदि नहीं तो क्यों?
490- यदि हाँ तो क्या उन्हें किसी कक्षा में आपने पढाया है?
491- यदि नहीं तो क्यों?
492- यदि हाँ तो क्यों? मजबूरी में या फिर इसके लिए आपने किसी से आग्रह किया?
493- विद्यालय में आपका पहला कर्तव्य क्या है? और क्यों?
494- विद्यालय में पढ़ाने के अलावा आपके पास कौन कौन से अतिरिक्त कार्य हैं?
495- क्या अतिरिक्त कार्य आपके शिक्षण कार्य को प्रभावित करते हैं?
496- पढाई के अलावां क्या विद्यार्थी आपके पास अपनी अन्य समस्याए लेकर आते हैं?
497- उनकी अन्य समस्याओं के पति आप कितने संवेदन शील है?
498- क्या आप अपने विद्यार्थियों को कभी दण्डित करते हैं? यदि हाँ तो कैसे?
499- आप अपने को कैसे करते हैं?
500- क्या आपको लगता है की आप तो विद्यार्थियों को अच्छी राह पर ले जाना चाहते है पर आपके विद्यालय के शिक्षक उन्हें बिगाड़ने की कोशिश कर रहे है?
501- यदि हाँ तो एक बार फिर से आप से प्रार्थना है कि कृपया सोंचे कि कहीं आप ही तो विद्यार्थियों को बिगाड़ नहीं रहें है?
502- क्या आप विद्यार्थियों के सामने हँसना पसंद करते है?
503- यदि नहीं तो क्या आप विद्यार्थियों को जीवन में खुश रहना सिखा सकते हैं?
504- विद्यार्थियों के प्रति क्या आपका दायित्व केवल अपना विषय पढ़ना हैं? या फिर कुछ और भी है?
505- यदि है तो क्या -क्या?
506- क्या आपके अपने बच्चे जीवन में सफल हैं? यदि हाँ तो मुबारक हो।
507- यदि नहीं तो सोचिये कि क्यों?
508- क्या आपने अपने विद्यार्थियों को नैतिकता का पाठ पढाया? क्या आप ने अपने विद्यार्थियों को स्वानुशासन का पाठ पढाया?
509- क्या आपको पता है कि आपके पुराने विद्यार्थी क्या कर रहें हैं? यदि पता है तो कैसे?
510- क्या आप अपने विद्यार्थियों के लिए प्रेरणा का श्रोत है?
511- सामाजिक जीवन में आपका कोई विद्यार्थी कोई अपराध करता है तो आप उसमें कितना दोषी है?
512- विद्यार्थियों की सफलता का श्रेय आपको तो उनके अपराध की सजा आपको क्यों नहीं?
513- कही आप अपने विद्यार्थियों में नकारात्मक प्रवत्तिया पनपने में सहायक तो नहीं हो रहे है?
आप शिक्षक हैं, मैं आपको क्या सिखा सकता हूँ? आपने स्वयं समाज का गुरुतर दायित्व ले रखा है?
लेकिन इस दायित्व को लेकर यदि पूरी निष्ठां का साथ इसे नहीं निभाया तो समाज के असली अपराधी आप ही होंगे। हो सकता है कि समाज आपके अपराध को नजरंदाज कर दे पर ईश्वर आपको कभी मांफ नहीं करेगा।
अंत में मैं यही कहना कहना चाहता हूँ कि सभी बच्चे ईश्वर के बच्चे है। यदि आपने किसी के बच्चे के साथ न्याय नहीं किया, तो क्या वह आपके साथ न्याय कर पायेगा?

आपका सारगर्भित, मूल्यवान एवं बुधिमत्ता पूर्ण प्रश्न किसी को सत्यान्वेषण के लिए प्रेरित कर सकता है।
अतः यदि आपके पास ऐसा कोई प्रश्न है तो सदस्यों से पूछे। सदस्यों से अनुरोध है कि वह अपने स्वाभाविक
निरीक्षण के आधार पर उत्तर दे। हो सकता है कि आपका उत्तर किसी के या स्वयं आपके जीवन को बदल दे।
सावधानी – मेरे प्रश्नों को किसी विचारधारा का संकेत नहीं समझाना चाहिए, बल्कि एक सर्वोचित,सर्वमान्य, सर्वग्राह्य विचार धारा को विकसित करने का प्रयास मात्र समझना चाहिए , जो कि आपके विश्लेष्णात्मक उत्तरों से ही संभव है। किसी एक व्यक्ति का उत्तर किसी विचारधारा, मान्यता या पूर्वाग्रह से ग्रसित हो सकता है अतः जब तक किसी प्रश्नका सर्वोचित, सर्वमान्य, सर्वग्राह्य उत्तर न मिल जाये विचार विमर्श चलते रहना चाहिये। मैं जो सोच रहा हूँ वही सही है यह तो अज्ञानता है। हाँ अपने विचारो को दूसरों के सामने रखने का हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है। लोगो को आपका विचार पसंद आताहै तो माने, नहीं आता तो नहीं माने। आप केवल परमपिता परमात्मा से उनकेकल्याण के लिए प्रार्थना अवश्य कर सकते है।
जरा गंभीरता से सोच कर बताना, कोई जल्दबाजी नहीं?
Please share with your family members, friends and relatives

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