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आज का प्रश्न 12/11/2012
ना काहू से बैर।
मांगूँ सबकी खैर।।
आज मैं अपने प्रश्नों को आप पर केन्द्रित करता हूँ।
” जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना अँधेरा धरा पर कही रह न जाये ”
यह कविता बचपन में पढ़ी थी। तब मेरे बाल मन को यह समझ नहीं आता था कि आखिर किस तरह , कैसे, कितने दिये जलाये जाये कि पूरी धरती जगमगा जाये।
एक और याद बचपन की दीपावलियों से जुड़ी है। वह यह है कि दीपक जलाते समय मेरे पिता जी कहते जाते थे “जागो-जागो धरती माता, जागो-जागो धरती माता” तब मेरे बल मन को यह समझ नहीं आता था कि आखिर धरती माता इतनी गहरी नींद क्यों सो गयी कि उन्हें जगाने के लिए सब लोग इतनी कोशिशे कर रहें हैं और धरती माता हैं कि जगती ही नहीं है, क्योकि अगली दीपावली फिर पिता जी वही दोहराते थे।
अब फ़िलहाल यह तो समझ में आ गया है कि इन कविताओं का वह अर्थ नहीं है जो मेरा बाल मन समझता था। पर आज भी समझ पाया हूँ कि नहीं यह जानने के लिए –
मैं आज आपसे केवल इन्ही दो पंक्तियों का भावार्थ जानना चाहता हूँ
714- “जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना अँधेरा धरा पर कही रह न जाये ” का भावार्थ क्या है?
715- “जागो-जागो धरती माता, जागो-जागो धरती माता” का भावार्थ क्या है?
माफ़ कीजियेगा एक और प्रश्न-
716- दीपावली मनाने का मकसद “वास्तविक उद्येश्य” क्या है?
कृपया सबको बता दीजिये जिससे इस बार सही मायनो में दीपावली का त्यौहार मनाया जा सके।
ॐ शांति: शांति: शांति।।
आपका सारगर्भित, मूल्यवान एवं बुधिमत्ता पूर्ण प्रश्न किसी को सत्यान्वेषण के लिए प्रेरित कर सकता है।
अतः यदि आपके पास ऐसा कोई प्रश्न है तो सदस्यों से पूछे। सदस्यों से अनुरोध है कि वह अपने स्वाभाविक
निरीक्षण के आधार पर उत्तर दे। हो सकता है कि आपका उत्तर किसी के या स्वयं आपके जीवन को बदल दे।
सावधानी – मेरे प्रश्नों को किसी विचारधारा का संकेत नहीं समझाना चाहिए, बल्कि एक सर्वोचित,सर्वमान्य, सर्वग्राह्य विचार धारा को विकसित करने का प्रयास मात्र समझना चाहिए , जो कि आपके विश्लेष्णात्मक उत्तरों से ही संभव है। किसी एक व्यक्ति का उत्तर किसी विचारधारा, मान्यता या पूर्वाग्रह से ग्रसित हो सकता है अतः जब तक किसी प्रश्न का सर्वोचित, सर्वमान्य, सर्वग्राह्य उत्तर न मिल जाये विचार विमर्श चलते रहना चाहिये। मैं जो सोच रहा हूँ वही सही है यह तो अज्ञानता है। हाँ अपने विचारो को दूसरों के सामने रखने का हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है। लोगो को आपका विचार पसंद आता है तो माने, नहीं आता तो नहीं माने। आप केवल परमपिता परमात्मा से उनके कल्याण के लिए प्रार्थना अवश्य कर सकते है।
जरा गंभीरता से सोच कर बताना, कोई जल्दबाजी नहीं?
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