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अध्यात्मिक उन्नति के लिए तार्किक ज्ञान (ज्ञान) के साथ अतार्किक ज्ञान (भक्ति) दोनों आवश्यक है।
हो सकता है कि कोई व्यक्ति अपनी यात्रा ज्ञान से प्रारंभ करके भक्ति बाद में अर्जित करे। और यह भी हो सकता है भक्ति से प्रारंभ करके ज्ञान बाद में अर्जित करे। लेकिन गुजरना उसको दोनों ही स्थिति से पड़ता है। अध्यात्मिक उन्नति की चरम स्थिति न तो ज्ञान है और न ही भक्ति। यह दोनों ही मात्र साधन है, अध्यात्मिक उन्नति के। अध्यात्म की चरम उपलब्धि तो शांति स्वरूप ईश्वर(परम सत्ता) में स्थापित होना है। जिसकी परिड़ति निःस्वार्थ प्रेम एवं निःस्वार्थ सेवा में होती है। इसके आगे तो सद्गुरु का मार्गदर्शन आवश्यक है। जिसकी खोज मैं स्वयं ही कर रहा हूँ। आप मेरी खोज में सहायक हो सकते हैं, या फिर हमसफर बन सकते हैं।
मदन मोहन मिश्र
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