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“समझदारी” (अंडरस्टैंडिंग- Understanding)
मैं समझदारी हूँ, मेरे परमपिता समस्त ब्रह्माण्ड ( The Universe) के जन्मदाता है, पालक है, उद्धारक हैं ( शरीर जीर्ण होने पर कृपा पूर्वक उसका नवीनीकरण कर देतें है।) “ईमानदारी” मेरी माता श्री तथा “सदाचार” मेरे पिता श्री है। बुद्धि, विवेक, तर्क, सत्साहस, न्याय,संस्कार, सु-धन इत्यादि मेरे भाई हैं। शिक्षा, नैतिकता , दया, करुणा, सद्भावना, अहिंषा,युक्ति इत्यादि मेरी बहने हैं। मन मेरा सचिव है। आत्मा मेरा घर है। सुविचार मेरा भोजन हैं, जो मुझे मन उपलब्ध करता है, उसी से मेरा पोषण होता है। समस्त मानवीय गुण एवं मूल्य मेरी संताने हैं। जो जीव मात्र के कल्याणार्थ मात्र देने में ही विश्वास रखते है, आप उन्हें देवता भी कह सकते है, मेरे गुरु-जन हैं। कलुषित भावनाए, बेईमानी, हेराफेरी,उत्तेजना, कामचोरी, जमाखोरी, अपराध, भ्रष्टाचार, हिंषा इत्यादि मेरा अस्तित्व मिटाने पर तुले रहते है पर मैं उनके प्रति भी द्वेष नहीं रखती हूँ, हमेशा उनके कल्याण के बारे में प्रयासरत रहती हूँ। पर वे मेरी बात माने तब न। मैं सभी समस्याओं को हल करने की ताकत रखती हूँ। पर समस्या से सम्बंधित जितने भी पक्ष हों उनमें कम से कम एक पक्ष तो मेरी ताकत पर भरोषा करे। मेरी सहायता न लेकर विवाद के दलदल में फसे रहकर अपनी जिंदगी को नर्क का पर्याय बना लेते हैं।
उपर्युक्त काल्पनिक उदाहरण के माध्यम से मैंने यह समझाने का प्रयास किया है समझदारी समस्त मानवीय सद्गुणों, मूल्यों, उपलब्धियों, मान्यताओं का परिणाम हैं। विवाद में फसे सभी पक्ष यदि समझदारी से समस्या का हल खोजें तो कोई कारण नहीं है कि समस्या का कोई ऐसा हल न निकले जो सभी को मान्य न हों। कम से कम एक पक्ष को तो समझदारी दिखानी ही पड़ेगी। नहीं तो फसे रहों जिन्दगी भर उस विवाद में और बना लो अपनी जिंदगी को नर्क का पर्याय। कुछ लोग तो यही चाहते ही हैं।
1- झूठी मान प्रतिष्ठा के लिए आय से ज्यादा खर्च करना समझदारी नहीं है।
“तेतो पाव पसारिए जाती लाम्बी सौर”
2- धन दौलत की खातिर खून के संबंधों को तोड़ देना समझदारी नहीं।
“एक न एक दिन एक होना ही है”, ” लाठी मरने से पानी अलग नहीं होता”
3- कुछ लोगों के पास अकूत संपत्ति हों और कुछ लोग भूखों मरे, समझदारी नहीं।
“कल को भूमिका की अदला बदली भी हो सकती है।”
4- किसी से सौ रूपये वसूलनें के लिए लाखों रूपये और सालों समय बर्बाद करना समझदारी नहीं।
5- अपराध को जड़ न उखाड फेंक कर उसके पत्तों और तनों को काटते रहना समझदारी नहीं।
” समस्त अपराधों मूल कारण है भ्रष्टाचार है, और भ्रष्टाचार का मूल कारण है भ्रष्ट नेताओं और भ्रष्ट अधिकारियों के विवेकाधिकार। नियम से काम हों कहीं कोई भ्रष्टाचार नहीं होगा जो नियम विरुद्ध कार्य करे दण्डित किया जाये। जो थोड़ा बहुत नियम कानून कायम है वह है ईमानदार नेताओं एवं इमानदार अधिकारियों की बदौलत जो स्वयं अक्सर परेशानी में रहते हैं।
6- घूस लेकर उस पैसे को बच्चों और परिवार के अन्य सदस्यों की बीमारी पर पैसा खर्च करना समझदारी नहीं।
” हराम का धन हमेशा आपको परेशानी से घेरे रहेगा”, “जैसा खाए धन वैसा बने मन”
7- माया के फेर में माया को निर्मित करने वाले को भुला देना समझदारी नहीं।
8- कीमती जीवन गवाकर घाटे का सौदा करना समझदारी नहीं।
9- बुद्धि और विवेक का स्तेमाल न करके बेवकूफी करना समझदारी नहीं।
10- समझदार को समझदारी ही शोभा देती है।
MADAN MOHAN MISRA
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